Monday 6 April 2020

एक ऐसा राज्य, जहां बिना 'वीजा' के नहीं जा सकते भारत के ही नागरिक

जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए पहले भारतीयों को परमिट लेनी पड़ती थी. विरोध के बाद यह व्यवस्था खत्म हुई. मगर देश का एक राज्य अब भी ऐसा है, जहां बिना आतंरिक वीजा लिए कोई भारतीय घुस नहीं सकता. अब इसे हटाने की मांग जोर पकड़ रही है.


जम्मू-कश्मीर में तो हालात फिर भी ठीक हैं. वहां देश का कोई भी नागरिक बिना अनुमति के जा सकता है. मगर नागालैंड में तो इनर लाइन परमिट लिए बगैर कोई भारतीय नागरिक घुस भी नहीं सकता. केवल स्थानीय निवासियों को ही बेरोकटोक राज्य में घूमने की छूट है. यह इनर लाइन परमिट एक प्रकार से आंतरिक वीजा जैसा दस्तावेज होता है.
यूं तो इनर लाइन परमिट रूल पहले जम्मू-कश्मीर में भी लागू था, मगर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आंदोलन के बाद वहां परमिट सिस्टम खत्म हो गया. लेकिन, नागालैंड में यह नियम आज भी जारी है. अब यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बनने लगा है.
हाल ही में बीजेपी नेता अश्निनी उपाध्याय इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचे तो वहीं बीते २४  जुलाई को दो सांसदों ने भी लोकसभा में इनर लाइन परमिट सिस्टम के मुद्दे को उठाया. जिस पर सरकार ने कहा है कि भारतीय नागरिकों को  अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और दीमापुर को छोड़कर नगालैंड में यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है. दीमापुर के लिए इनर लाइन परमिट लागू करने के लिए राज्य सरकार के प्रस्ताव पर अभी विचार-विमर्श चल रहा है.

आंतरिक वीजा जैसा होता है इनर लाइन परमिट
देश में इस वक्त सिर्फ नागालैंड में ही इनर लाइन परमिट सिस्टम लागू है. बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन्स, १८७३  के तहत यह व्यवस्था एक सीमित अवधि के लिए किसी संरक्षित, प्रतिबंधित क्षेत्र में दाखिल होने के लिए अनुमति देता है. नौकरी या फिर पर्यटन के लिए पहुंचने वालों को अनुमति लेनी जरूरी है. बताया जाता है कि गुलामी के दौर में ब्रिटिश सरकार ने इनर लाइन परमिट सिस्टम की शुरुआत की थी. तब नागालैंड क्षेत्र में जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक औषधियों का प्रचुर भंडार था. जिसे ब्रिटेन भेजा जाता था. औषधियों पर दूसरों की नजर न पड़े, इसके लिए ब्रिटिश शासन ने नागालैंड के हिस्से में इनर लाइन परमिट की शुरुआत की थी. ताकि इस इलाके का संपर्क बाहरी क्षेत्रों से न हो सके.

आजादी के बाद भी सरकार ने इनर लाइन परमिट को जारी रखा. इसके पीछे तर्क था कि नागा आदिवासियों का रहन-सहन, कला संस्कृति, बोलचाल औरों से अलग है. ऐसे में इनके संरक्षण के लिए इनर लाइन परमिट जरूरी है. ताकि बाहरी लोग यहां रहकर उनकी संस्कृति प्रभावित न कर सकें.
सुप्रीम कोर्ट में आईएलपी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले अश्निनी उपाध्याय कहते हैं कि आईएलपी व्यवस्था अपने ही देश में वीजा लेने की तरह है. यह संविधान से भारतीय नागरिकों को मिले अनुच्छेद १४  (समानता), १५  (भेदभाव की मनाही), १९  (स्वतंत्रता) और २१  (जीवन) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. उपाध्याय ने कहा कि नागालैंड में ९०  प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है. नागा आदिवासियों के संरक्षण के लिए इनर लाइन परमिट की व्यवस्था की गई थी. मगर अब जब ९०  प्रतिशत आबादी वहां की ईसाई हो चुकी है, सरकार की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी हो चुकी है. हर गांव में चर्च है.
आदिवासी अपने पुराने रीति-रिवाजों की जगह चर्चों में ईसाई रीति-रिवाज से शादियां कर रहे हैं. ऐसे में अब नागाओं के संरक्षण के मकसद से लागू इनर लाइन परमिट का कोई औचित्य ही नहीं रहा. अश्निनी उपाध्याय का आरोप है कि नागालैंड के स्थानीय नेता अलगाववाद की दुकान चलाने के लिए चाहते हैं कि स्थानीय जनता का बाहर के लोगों से संपर्क न हो सके. इनर लाइन परमिट के जरिए देश-दुनिया से नागालैंड को काटने की कोशिश हो रही है. अब मैदानी क्षेत्र दीमापुर में भी राज्य सरकार परमिट सिस्टम लागू करना चाहती है. २ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट उपाध्याय की याचिका यह कह कर खारिज कर चुका है कि अभी वह इस मसले को सुनना नहीं चाहता.
नागालैंड के बारे में खास बातें
-नागालैंड का ज्यादातर हिस्सा पहाड़ी है. सिर्फ दीमापुर ही मैदानी क्षेत्र हैं, जहां रेलवे और विमान सेवाएं उपलब्ध हैं. पहले दीमापुर असम के हिस्से में आता था. मगर नागालैंड को देश के परिवहन से जोड़ने के लिए उसे मैदानी क्षेत्र दीमापुर दे दिया गया. कोलकाता से दीमापुर को जोड़ने के लिए सप्‍ताह में तीन दिन इंडियन एयरलाइंस की उड़ान है. सरकारी वेबसाइट know india.gov पर नागालैंड के बारे में कई अहम जानकारियां हैं. मसलन,
-नागालैंड पूर्व में म्‍यांमार, उत्‍तर में अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम में असम और दक्षिण में मणिपुर से घिरा हुआ है.
-नागालैंड राज्‍य का क्षेत्रफल १६,५७९  वर्ग किलोमीटर तथा २००१  के जनगणना के अनुसार इसकी आबादी १९,८८,६३६  है. -असम घाटी की सीमा से जुडे़ इलाके के अलावा इस राज्‍य का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है. इसकी सबसे ऊंची पहाड़ी सरमती है. जो, नागालैंड और म्‍यांमार के बीच एक प्राकृतिक सीमा रेखा खींच देती है.
-नागालैंड की प्रमुख जनजातियां हैं- अंगामी, आओ, चाखेसांग, चांग, खिआमनीउंगन, कुकी, कोन्‍याक, लोथा, फौम, पोचुरी, रेंग्‍मा, संगताम, सुमी, यिमसचुंगरू और जेलिआं.
-१९  वीं शताब्‍दी में अंग्रेजों के आगमन पर यह क्षेत्र ब्रिटिश शान के अधीन आ गया. आजादी के बाद १९५७ 
में यह क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश बन गया और असम के राज्‍यपाल इसका प्रशासन देखने लगे. पहले इसका नाम नगा हिल्‍स तुएनसांग क्षेत्र था.

-१९६१  में इसका नाम बदलकर 'नागालैंड' रखा गया और इसे भारतीय संघ के राज्‍य का दर्जा दिया गया.

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